फुटबॉल को राष्ट्रीय खेल बनाने की मांग क्यों उठ रही है?

यूं भी आजादी के 75 साल बाद भी हमारा कोई राष्ट्रीय खेल नहीं बन पाया है

कुछ फुटबॉल दीवाने चाहते हैं कि भारत सरकार को आगे बढ़ कर फुटबॉल के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए

कई शहरों के कुछ युवाओं ने कहा कि सरकार यदि फुटबॉल को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दे तो इस खेल में भारत भी बड़ी ताकत बन सकता है

राजेंद्र सजवान

शायद ही किसी खेल के चलते दुनिया की रफ्तार धीमी पड़ जाए या जन-जीवन थम सा जाए लेकिन जब फीफा वर्ल्ड कप के मुकाबले अपने शबाब पर होते हैं तो फुटबॉल से जुड़ा एक बड़ा वर्ग सिर्फ और सिर्फ फुटबॉल की बात करना पसंद करता है। और फिर एक दौर ऐसा भी आता है जब आम खेलप्रेमी फुटबॉल खाता, पीता और सोता है, जैसा कि फिलहाल लैटिन अमेरिकी देश अर्जेंटीना में चल रहा है। भारत में ऐसा माहौल कभी-कभार क्रिकेट में देखने को मिल सकता है लेकिन बाकी खेल फुटबॉल की बराबरी नहीं कर सकते।

  इसमें दो राय नहीं कि हर खेल की अपनी गरिमा और लोकप्रियता है। लेकिन भारत में क्रिकेट के अलावा शायद ही कोई दूसरा खेल होगा जिसके चैम्पियनों को फुटबॉलरों की तरह सर माथे बैठाया जाता हो। सालों पहले हॉकी और आज के दौर में क्रिकेट खिलाड़ियों को राष्ट्रीय नायकों की तरह सम्मान दिया गया लेकिन ये दोनों ही खेल सिर्फ दस देशों तक सीमित हैं।

 

कतर फीफा वर्ल्ड कप के बाद और खासकर अर्जेंटीना की शानदार जीत को देखते हुए आम भारतीय भी फुटबॉल के बारे में सोचने समझने लगा है। उसे पता है कि भारतीय फुटबॉल का विश्व स्तर पर जरा भी मान-सम्मान नहीं है, फिर भी इस खेल के दीवानों की संख्या भारत में करोड़ों क्यों है? क्यों लाखों भारतीय महंगी टिकट खरीद कर वर्ल्ड कप देखने जाते हैं और क्यों करोड़ों टीवी सेट से चिपके रहते हैं।

   ऐसे ही कुछ फुटबॉल दीवाने चाहते हैं कि भारत सरकार को आगे बढ़ कर फुटबॉल के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए और हो सके तो फुटबॉल को राष्ट्रीय खेल घोषित कर देना चाहिए। यूं भी आजादी के 75 साल बाद भी हमारा कोई राष्ट्रीय खेल नहीं बन पाया है।

  

   टीम खेलों में सिर्फ और सिर्फ फुटबॉल ही ऐसा खेल है जिसे पूरी दुनिया में जाना पहचाना जाता है। तारीफ की बात यह है फीफा वर्ल्ड कप के विजेता अर्जेंटीना की जीत का जश्न पूरे भारत में भी मनाया गया तो फ्रांस की हार का गम भी दुनिया भर के फुटबॉल प्रेमियों ने महसूस किया। आम भारतीय फुटबॉल प्रेमी यदि लियोनेल मेस्सी का दीवाना है तो वह क्लियन एमबापे का दर्द भी महसूस करता है। लेकिन वह भारतीय फुटबॉल के बारे में कम ही जानता है या जानना ही नहीं चाहता। उसे पता है कि भारत में फुटबॉल की हालत बेहद खराब है।

   दिल्ली, मुम्बई, गोवा, कोलकाता, बंगलुरू, चेन्नई, शिलोंग, इंफाल आदि शहरों के कुछ युवाओं ने कतर वर्ल्ड कप के चलते कहा कि सरकार यदि फुटबॉल को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दे तो इस खेल में भारत भी बड़ी ताकत बन सकता है। देश के करोड़ों युवा भले ही क्रिकेट का रोमांच उठाते हों लेकिन एक बड़ा वर्ग सिर्फ फुटबॉल का दीवाना है और क्रिकेट को खेल की बजाय तमाशा भर मानता है।

   ऐसी सोच रखने वाले करोड़ों भारतीय क्रिकेट को मजबूरी मानते हैं तो हॉकी ज्यादातर के दिलोंदिमाग से उतर चुकी है। उन्हें दादा ध्यानचंद के दौर का पता नहीं लेकिन मेस्सी का जादू भाता है। उन्हें क्रिकेट की धमाचौकड़ी अखरने लगी है। शायद इसी लिए फुटबॉल की गंभीरता और महानता के साथ जीना चाहते हैं।

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