भारतीय भागीदारी पर संकट, घर के भेदी चाक चौबंद !

  • देश और खेल के गद्दारों का एक बड़ा वर्ग भारतीय भागीदारी को रोकने पर आमादा है
  • अगर भारत भाग नहीं ले पाया  तो खेल मंत्रालय और आईओए की फजीहत पक्की है
  • कराटे की दुकाने चलाने वाले शातिरों के खिलाड़ी भी शामिल हुए जो कि बाहर बैठकर खेल मंत्रालय के प्रयोग को विफल करने की साजिश रच रहे हैं
  • उनके तार वर्ल्ड बॉडी से बराबर जुड़े रहे और पल-पल की खबर उन तक पहुंचाई जा रही है
  • वे नहीं चाहते कि भारत का खिलाड़ी विश्व स्तर पर भाग ले, पदक जीते और नाम कमाए
  • ऐसा हुआ तो कुछ एक की लूट की दुकान बंद हो सकती है और उनका यही डर कराटे को उबरने नहीं दे रहा

राजेंद्र सजवान

खेल मंत्रालय और इंडियन ओलम्पिक एसोसिएशन (आईओए) चाहे जितना भी जोर लगा लें और कितने भी ट्रायल करा लें, एशियन गेम्स में भारतीय कराटे टीम भाग नहीं ले पाएगी, कराटे की वैश्विक संस्था से जुड़े कुछ लोग ऐसा दावा कर रहे हैं। फिलहाल भारतीय खेल प्रधिकरण (साई) की देख-रेख में आयोजित चयन ट्रायल के नतीजों पर खेल से जुड़े खिलाड़ियों, कोचों, अधिकारियों और देश में कराटे की दुकाने चलाने वालों की नजरें गड़ी हैं। हालांकि साई की देख-रेख में आयोजित चयन परीक्षा में तमाम इकाइयों, गुटों, सरकारी और गैर-सरकारी क्लबों और संस्थानों को भाग लेने का मौका दिया गया। उन शातिरों के खिलाड़ी भी शामिल हुए जो कि बाहर बैठकर खेल मंत्रालय के प्रयोग को विफल करने की साजिश रच रहे हैं। उनके तार वर्ल्ड बॉडी से बराबर जुड़े रहे और पल-पल की खबर उन तक पहुंचाई जा रही है।

 

  सवाल यह पैदा होता है कि कोई भी एशियाड या ओलम्पिक गेम्स जैसे आयोजनों में क्यों भाग नहीं लेना चाहेगा? हर खिलाड़ी और अधिकारी का सपना यह होता है कि उसे और उसके खेल को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान मिले। लेकिन इस देश का दुर्भाग्य है कि मार्शल आर्ट्स खेलों की दुकाने चलाने   वालों को यह सब गंवारा नहीं। वे नहीं चाहते कि भारत का खिलाड़ी विश्व स्तर पर भाग ले, पदक जीते और नाम कमाए। ऐसा हुआ तो कुछ एक की लूट की दुकान बंद हो सकती है और उनका यही डर कराटे को उबरने नहीं दे रहा। अफसोस इस बात का है कि खेल मंत्रालय और तमाम जिम्मेदार इकाइयों ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया और कराटे सहित तमाम खेलों में मनमर्जी का खेल खेला जाता रहा है। एक अनुमान के अनुसार पचास लाख से अधिक खिलाड़ी अब तक बर्बाद हो चुके हैं। वे न तो पहचान बना सके और न ही उन्हें कहीं रोजगार मिल पाया। हैरानी वाली बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में खिलाड़ियों को भागीदारी का मौका नहीं मिल पाता लेकिन 15-20 साल का खिलाड़ी कोच और रेफरी बन जाता है, इसलिए क्योंकि खेल के नाम पर जंगल राज चल रहा है।

 

  फिलहाल भारतीय टीम का चयन और एशियाई खेलों में भागीदारी प्रमुख है, जिसके लिए मंत्रालय और तमाम गुट एकजुट हो गए हैं लेकिन उन लोगों से निपटना आसान नहीं होगा जो कि सालों से खेल को अपनी उंगली पर नचाते आ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो ओलम्पिक काऊसिल ऑफ एशिया, एशियन गेम्स कमेटी, भारतीय ओलम्पिक कमेटी, विश्व कराटे फेडरेशन में रस्सा कस्सी चल रही है और देश और खेल के गद्दारों का एक बड़ा वर्ग भारतीय भागीदारी को रोकने पर आमादा है। इतना तय है कि भारत भाग नहीं ले पाया  तो खेल मंत्रालय और आईओए की फजीहत पक्की है।

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