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दिल्ली एफसी: दिल्ली की फुटबाल क्यों भयभीत है चंडीगढ़ की अकादमी से?

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

दिल्ली की फुटबाल शायद करवट बदल रही है। ऐसा मोहाली स्थित मिनर्वा फुटबाल अकादमी के दिल्ली आगमन और ऊंची छलांग से प्रतीत हो रहा है। एक घिसे पिटे ढर्रे पर चल रही दिल्ली की फुटबाल ने शायद ही कभी सोचा होगा कि उसे चुनौती देने कोई ऐसा क्लब अवतरित हो सकता है, जिसकी जड़ें चंडीगढ़ में हों और उनका फैलाव दिल्ली की फुटबाल को अपनी गिरफ्त में ले लेगा।

राजधानी के अंबेडकर स्टेडियम में खेली जा रही दिल्ली फुटबाल लीग में लगातार सात मैच जीत कर दिल्ली फुटबाल क्लब ने ना सिर्फ अपने तेवर दिखाए हैं अपितु तमाम स्थानीय कलबों को दहशत से भर दिया है। जी हां, ऐसा हो रहा है। डीएफसी ने मैच दर मैच शानदार प्रदर्शन कर जहां एक ओर जीत का सिलसिला बनाए रखा है तो साथ ही यह संदेश भी दे दिया है कि दिल्ली के कलबों को अपना अस्तित्व बचाने के लिए पूरी तरह पेशेवर बनना होगा। वरना उनका हाल भी पीछे छूट गए दर्जन भर स्थानीय कलबों जैसा हो सकता है।

दिल्ली एससी के दिल्ली आने से पहले ही नेशनल, सिटी, मुगल्स, यंगस्टर, यंगमैन, शिमला यंग्स, यंगस्टर्स, नई दिल्ली हीरोज, जैसे कलबों की तूती बोलती थी। पुराने और स्थापित कलबों में गढ़वाल हीरोज, हिंदुस्तान, भारतीय वायुसेना, रॉयल रेंजर्स, उत्तराखंड एफसी आदि क्लब बचे हैं,जिन पर दिल्ली की फुटबाल की पहचान को बनाए रखने की जिम्मेदारी है। लेकिन दिल्ली एफसी ने राजधानी की फुटबाल का पूरा सीन बदल दिया है। फिट और हिट खिलाड़ियों से सजे डीएफसी के सामने एक भी क्लब टिक नहीं पा रहा।

आम तौर पर दिल्ली लीग के चैंपियन का फैसला आखिरी मैच तक ही हो पाता है। लेकिन इस बार आधे अधूरे सफर में ही अंतिम परिणाम लगभग तय हो चुका है। पिछले साल गढ़वाल हीरोज से हार कर डीएफसी दूसरे नंबर पर रही लेकिन इसबार सौ फीसदी सफलता रिकार्ड के साथ पहली बार दिल्लीफुटबाल का मुकुट डीएफसी के सिर सजने जा रहा है।

इसमें दो राय नहीं कि चैंपियन क्लब केपास हर पोजिशन के बेहतरीन खिलाड़ी हैं, जोकि कभी भी मैच का रुख बदल सकते हैं। लेकिन डीएफसी के मालिक और मैनेजर रंजीत बजाज टीम के सबसे असरदार, जोशीले और आक्रामक खिलाड़ी हैं, जोकि बिना खेले ही पूरा मैच खेल जाते हैं। हर मैच में अपनी टीम को विजेता बनाने में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पूरे मैच में वह फुटबाल प्रेमियों, रैफरी, लाइन्समैन, प्रतिद्वंद्वी टीम के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। अपनी तीखी और असरदार आवाज से वह रेफरी और टेबल रैफरी का ध्यान आकर्षित करते हैं तो कई बार मैच रेफरी और स्टाफ से भिड़ते देखे जा सकते हैं। बेशक, वह अपनी टीम का मनोबल बढ़ाते हैं लेकिन उन्हें रैफरी की चेतावनी और कभी कभार पीले कार्ड से भी दो चार होना पड़ता है।

लेकिन मैच के बाद यह महाशय एकदम अलग इंसान नजर आते हैं। अपनेऔर विपक्षी खिलाड़ियों एवम रेफरियों से जोश के साथ हाथ मिलाते देखे जा सकते हैं। अव्वल दर्जे के शातिर हैं।

रणजीत बजाज की टीम को रोकने में फिलहाल दिल्ली के क्लब लाचार नजर आते हैं। लेकिन डीएफसी के समर्थकों को संयम दिखाना होगा। खासकर, अपशब्दों के प्रयोग से बचने की जरूरत है।

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