ओलम्पिक आयोजन हंसी खेल तो नहीं!

  • देश के खेलमंत्री अनुराग ठाकुर कह रहे हैं कि भारत 2036 के ओलम्पिक खेलों की मेजबानी का दावा पेश करेगा लेकिन ओलम्पिक आयोजन के लिए ऐसा बहुत कुछ करना होगा, जो कि फिलहाल भारतीय क्षमता से बाहर की बात है
  • जब कभी किसी देश को ओलम्पिक आयोजन की जिम्मेदारी सौपती है, तो सबसे पहले उस देश का ओलम्पिक प्रदर्शन, उपलब्ध स्टेडियम और अन्य जरूरी सुविधाएं, देश की आर्थिक- सामाजिक स्थिति और उस देश में खेलों के लिए माहौल को कसौटी माना जाता है
  • ओलम्पिक में शामिल दस फीसदी खेलों में ही भारतीय खिलाड़ी कभी-कभार पदक जीत पाए हैं, जिनमें कुश्ती, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, वेटलिफ्टिंग, हॉकी, टेनिस और एथलेटिक्स शामिल हैं और नीरज चोपड़ा द्वारा जीता गया एकमात्र गोल्ड पदक ही एथलेटिक्स में हमारी पहचान है
  • अफसोस की बात यह है कि पदकों का अंबार लगाने वाले खेलों तैराकी, जिम्नास्टिक और एथलेटिक्स में भारत महा-फिसड्डियों में शुमार होता है

राजेंद्र सजवान

देश के खेलमंत्री अनुराग ठाकुर कह रहे हैं कि भारत 2036 के ओलम्पिक खेलों की मेजबानी का दावा पेश करेगा। बेशक, भारत को ऐसा करना भी चाहिए। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश यदि ऐसा करना चाहता है तो पहले उसे अपनी कार्यकुशलता और खेल मैदान पर अर्जित उपलब्धियों का आकलन भी अवश्य कर लेना चाहिए।

   इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत विश्व स्तर पर कुछ भी कर गुजरने के लिए जाना जाता है और भारतीय वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, साहित्यकारों और शीर्ष नेताओं ने अनेकों भारतीय योग्यता और क्षमता के दर्शन भी कराए हैं। लेकिन ओलम्पिक आयोजन के लिए ऐसा बहुत कुछ करना होगा, जो कि फिलहाल भारतीय क्षमता से बाहर की बात है। अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) जब कभी किसी देश को ओलम्पिक आयोजन की जिम्मेदारी सौंपती है, तो सबसे पहले उस देश का ओलम्पिक प्रदर्शन, उपलब्ध स्टेडियम और अन्य जरूरी सुविधाएं, देश की आर्थिक-सामाजिक स्थिति और उस देश में खेलों के लिए माहौल को कसौटी माना जाता है।

 

  यह सही है कि भारत तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाला देश है लेकिन अपनी ओलम्पिक उपलब्धियों पर नजर डालें तो पिछले सौ सालों में भारत छुट-पुट सफलता ही अर्जित कर पाया है। 1896 में पहले आधुनिक ओलम्पिक खेलों का आयोजन यूनान में किया गया था। भारत ने चार साल बाद पहली बार भाग लिया। तत्पश्चात 1920 से भारतीय खिलाड़ी लगातार भाग लेते आ रहे हैं लेकिन अब तक मात्र दो व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीत पाए हैं। ओलम्पिक में शामिल दस फीसदी खेलों में ही भारतीय खिलाड़ी कभी-कभार पदक जीत पाए हैं, जिनमें कुश्ती, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, वेटलिफ्टिंग, हॉकी, टेनिस और एथलेटिक्स शामिल हैं। अफसोस की बात यह है कि पदकों का अंबार लगाने वाले खेलों तैराकी, जिम्नास्टिक और एथलेटिक्स में भारत महा-फिसड्डियों में शुमार होता है। नीरज चोपड़ा द्वारा जीता गया एकमात्र गोल्ड पदक ही हमारी पहचान है।

   जाहिर है कि करोड़ों का खर्च होगा, जिसके लिए बड़े और आधुनिक स्टेडियमों, सड़कों और होटलों का निर्माण करना होगा। साथ ही भारत को आईओसी के सदस्य देशों का समर्थन भी चाहिए। अर्थात् देश के खेल मंत्रालय और सरकार को सबसे पहले अपना दमखम दिखाना है। एशियाड का दो बार आयोजन और कॉमनवेल्थ गेम्स का सफल आयोजन जरूर किया है लेकिन ओलम्पिक की बात कुछ और है।

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