आत्मघाती फुटबॉल शक के घेरे में

  • बिना किसी साक्ष्य के आरोप लगाना ठीक नहीं होगा लेकिन देश का मीडिया आरोप लगा रहा है कि भारतीय फुटबॉल फिक्सिंग और सट्टेबाजी के हाथों में खेल रही है
  • चाहे खिलाड़ी, कोच, अधिकारी, स्पांसर और रेफरी ही क्यों न हों, सभी कहीं न कहीं पथ भ्रष्ट हैं
  • इस संवाददाता ने अनेकों बार देश और दिल्ली की फुटबॉल के कर्णधारों को चेताया लेकिन शायद ही किसी ने गंभीरता दिखाई हो
  • राजधानी के इस फिसड्डी क्लब ने दिल्ली प्रीमियर लीग 2023-24 का समापन बड़े ही शर्मनाक अंदाज में किया, क्योंकि उसने अपने ही गोल में दो बार बॉल डालकर दिल्ली और भारत की फुटबॉल के आकाओं को ठेंगा दिखा दिया
  • फुटबॉल जानकारों और स्थानीय खिलाड़ियों, कोचों तथा अभिभावकों को लगता है कि बाहरी और खासकर, बंगाल के खिलाड़ियों को अधिकाधिक रजिस्टर्ड करने वाले क्लबों की हरकतें सालों से दिल्ली की फुटबॉल को बर्बाद कर रही है

राजेंद्र सजवान

भारतीय फुटबॉल क्यों तरक्की नहीं कर पा रही है? क्यों हम फीफा वर्ल्ड रैंकिंग में पिछड़ते जा रहे हैं? इन सवालों का जवाब बस इतना है कि भारतीय फुटबॉल के कर्ताधर्ताओं की नीयत में खोट है। फिर चाहे खिलाड़ी, कोच, अधिकारी, स्पांसर और रेफरी ही क्यों न हों, सभी कहीं न कहीं पथ भ्रष्ट हैं। हालांकि बिना किसी साक्ष्य के आरोप लगाना ठीक नहीं होगा लेकिन देश का मीडिया आरोप लगा रहा है कि भारतीय फुटबॉल फिक्सिंग और सट्टेबाजी के हाथों में खेल रही है। दिल्ली प्रीमियर लीग में एक स्थानीय क्लब द्वारा दो आत्मघाती गोल दागने की शर्मनाक घटना को देश भर के मीडिया ने खूब चटखारे लेकर छापा और दिखाया कि कैसे दिल्ली और देश की फुटबॉल मिलीभगत करने वालों के हाथ में खेल रही है। हालांकि दिल्ली की फुटबॉल को तमाशा बनाने वालों में से ज्यादातर ऐसे है, जिन्होंने शायद ही कभी फुटबॉल मैच कवर किए हों।

   इस संवाददाता ने अनेकों बार देश और दिल्ली की फुटबॉल के कर्णधारों को चेताया लेकिन शायद ही किसी ने गंभीरता दिखाई हो। अंतत: अहबाब फुटबॉल क्लब ने सरेआम फुटबॉल का नंगा नाच दिखा दिया। राजधानी के इस फिसड्डी क्लब ने दिल्ली प्रीमियर लीग 2023-24 का समापन बड़े ही शर्मनाक अंदाज में किया। बकायदा अपने ही गोल में दो बार बॉल डालकर दिल्ली और भारत की फुटबॉल के आकाओं को ठेंगा दिखा दिया।

   ऐसा नहीं है कि तथाकथित मैच फिक्सिंग का यह पहला मामला हो। पहले भी अनेकों बार ऐसा होता आया है। फर्क सिर्फ इतना है कि सरेआम दुस्साहस और आत्मघाती गोल जमाने की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं मिले। स्थानीय लीग में तरुण संघा, रेंजर्स और अहबाब सबसे निचले पायदान पर रहे और इन क्लबों को हमेशा शक की नजर से देखा जाता रहा है। हैरानी तब हुई जब रेंजर्स क्लब को ‘फेयर प्ले’ ट्रॉफी से सम्मानित किया गया। ऐसा क्लब जिसके पास बैंच स्ट्रेंथ भी नहीं बची है।  

 

  फुटबॉल जानकारों और स्थानीय खिलाड़ियों, कोचों तथा अभिभावकों को लगता है कि बाहरी और खासकर, बंगाल के खिलाड़ियों को अधिकाधिक रजिस्टर्ड करने वाले क्लबों की हरकतें सालों से दिल्ली की फुटबॉल को बर्बाद कर रही है। खुद दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) से जुड़े क्लब अधिकारी मान रहे हैं कि जब से दिल्ली के अपने खिलाड़ियों की संख्या घटी है, तब से विवादास्पद और बदनाम क्लबों पर ज्यादा उंगलियां उठी रही हैं। लेकिन ऐसा सिर्फ दिल्ली या डीएसए में नहीं हो रहा है। गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु और लगभग सभी प्रदेशों में गड़बड़झाला चल रहा है। फिर भला फुटबॉल भारत में कैसे चलेगी?

(लेखक खुद दिल्ली के जाने-माने क्लबों से खेल चुका है और पिछले 45 सालों से खिलाड़ी, क्लब अधिकारी और फुटबॉल विशेष रहा है।)

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