Sorry Sir Durand, Indian Football Sorry to the organizers of the Durand Cup

सर डूरंड, भारतीय फुटबाल को माफ करना! माफ करना डूरंड कप के आयोजकों को!!

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

दिल्ली की फुटबाल के लिए एक बड़ी खुश खबरी यह है कि दिल्लीएफसी ने डूरंड कप फुटबाल टूर्नामेंट के क्वार्टर फाइनल में प्रवेश कर लिया है। दिली के क्लब ने आईएसएल टीम केरला ब्लास्टर को परास्त कर दिल्ली की फुटबाल को गौरवान्वित किया है। बेशक, दिल्ली साकर एसोसिएशन और दिल्ली एफसी साधुवाद के पात्र हैं।

अब दिल्ली को अगले मैच में एफसी गोआ से खेलना है। अंतिम आठ में पहुँचने वाली अन्य टीमें है-आर्मी स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड, बंगलूरु एफ सी, मोहमडन स्पोर्टिंग क्लब, केरला एफसी, आर्मी स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड रेड और बेंगलूरु युनाइटेड।

सभी आठ टीमें बधाई की पात्र हैं लेकिन सर मोरटिमर डूरंड की आत्मा रो ज़रूर रही होगी। 1888 में शुरू हुए एशिया के सबसे पुराने टूर्नामेंट का स्तर इतना गिर जाएगा उनको शायद ही कभी ख्याल आया होगा।

डूरंड कप के इतिहास पर नज़र डालें तो 1940 में जब कोलकाता के मोहमडंन स्पोर्टिंग क्लब ने खिताब जीता तो भारतीय क्लबों में जैसे भाग लेने और कप जीतने की होड़ सी लग गई। 1950 में हैदराबाद सिटी पुलिस विजेता बनी। लेकिन तत्पश्चात कोलकाता के मोहन बागान और ईस्ट बंगाल क्लबों में जैसे होड़ सी लग गई।

दोनों क्लबों ने अनेकों बार देश का सबसे प्रतिष्ठित कप जीता। मद्रास रेजीमेंट सेंटर, आंध्रप्रदेश पुलिस, गोरखा ब्रिगेड, मफ़त लाल, जेसीटी फगवाडा, सीमा सुरक्षा बाल, सालगांवकर राजस्थान पुलिस, महिंद्रा युनाइटेड, सेना इलेवन , चर्चिल ब्रदर्स, एयर इंडिया आदि टीमों ने भी कप जीता। तारीफ की बात यह है कि उस दौर की तमाम टीमों में स्टार अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी शामिल थे।

सच्चाई यह है कि बीसवीं सदी तक सेना और कभी कभार वायु सेना द्वारा आयोजित किया जाने वाला डूरड कप देश के तमाम क्लबों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता था। डूरंड और डीसीएम ट्राफ़ी में खेलना देश के हर उभरते फुटबालर का पहला सपना होता था। इन दोनों ही आयोजनों के चलते दिल्ली का अंबेडकर स्टेडियम खचा खच भरा होता था।

डीसीएम ग्रुप द्वारा अपने लोकप्रिय टूर्नामेंट को बंद करने का बड़ा सदमा भारतीय कलबों को झेलना पड़ा। डूरंड जैसे तैसे चल रहा है लेकिन ऐसे चलने से बेहतर यह होगा कि इस आयोजन को भी बंद कर दिया जाए या पुराने तेवरों के साथ फिर से शुरू किया जाए, ऐसा भारतीय फुटबाल में रूचि रखने वालों का मानना है। उन्हें यह आयोजन बस खानापूरी लगता है।

दिल्ली से चूँकि दो बड़े आयोजन छिन गए, ऐसे में दिल्ली के किसी क्लब का उभर कर आना बड़ी बात है। लेकिन दिल्ली, गोवा, कोलकाता जैसे शहरों की यात्रा करने वाला डूरंड कप अपनी पहचान खो चुका है और कभी भी दम तोड़ सकता है।

भारतीय फुटबाल को आईएसएल बर्बाद कर रही है तो डूरंड कप में आईएसएल के दूसरे दर्जे की टीमों की भागीदारी डूरंड कप की बची खुची साख डुबोने वाली है। जो टीमें या क्लब कभी देश की फुटबाल के महारथियों में शामिल थे उनका अस्तित्व या तो मिट गया है या फुटबाल फ़ेडेरेशन की गंदी राजनीति ने उन्हें बर्बाद कर दिया है।

बेशक, डूरंड कप का दिल्ली से भाग खड़ा होना स्थानीय खिलाड़ियों और टीमों के लिए भारी नुकसान है। कभी शिमला यंग्स, गढ़वाल हीरोज, एंडी हीरोज, सिटी, नेशनल, मुगल्स, यंगमैन जैसे प्रमुख क्लबों में दिल्ली के अपने खिलाड़ी भाग लेते थे लेकिन आज हालात बद से बदतर हैं कुछ साल पहले तक चार स्थानीय क्लब डूरंड कप में खेल लेते थे, जिनमे शिमला यंग्स का रिकार्ड शानदार रहा है,जिसने सेमिफाइनल तक का सफर तय किया।

आज आलम यह है कि डूरंड कप में भाग लेने वाले अधिकांश क्लब स्कूल-कालेज स्तर के भी नहीं रह गए हैं, जिसके गुनहगार एआईएफएफ और खुद आयोजक हैं। यदि दिल्ली एफसी कुछ बेहतर कर पाई तो शायद दिल्ली की फुटबाल की रौनक लौट आए।

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