Your coach is not of any use and foreigners are doing all the work - Biru Mal

अपने कोच काम के नहीं और विदेशी कर रहे काम तमाम–बीरू मल

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

“पिछले कई सालों से भारतीय फुटबाल लगातार नीचे सरक रही है। एशियाड खेलने का मौका नहीं मिल रहा और ओलंम्पिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाते। इसलिए क्योंकि देश में फुटबॉल का कारोबार करने वालों को अपनों पर भरोसा नहीं और विदेशी भरोसे पर खरा नहीं उतर पा रहे।

सीधा सा मतलब है कि हम फेल हो रहे हैं क्योंकि हम पास नहीं होना चाहते” जाने माने फुटबाल कोच और फुटबाल पर कई किताबों के रचियता पूर्व एनआईएस चीफ और अनेक भारतीय टीमों को फुटबाल के दाव पेंच सिखाने वाले बीरू मल का ऐसा मानना है। वीरू मल उस पीढ़ी के कोच हैं जब भारतीय फुटबाल शिखर से नीचे लुढ़कने लगी थी।

बिरुमल को इस बात का मलाल है कि लगभग चालीस सालों से विदेशी कोचों से सीखने पढ़ने के बावजूद भी भारत के खिलाड़ी पिछड़ते जा रहे हैं। उन्हें नहीं लगता कि विदेशियों पर लाखों करोड़ों लुटा कर कहीं कोई फायदा हुआ है।

कुछ माह पहले पूर्व राष्ट्रीय कोच, साई के चीफ कोच और ध्यान चंद खेल अवार्ड से सम्मानित स्वर्गीय सैयद हकीम ने भारतीय फुटबाल की दशा को बेहद दयनीय बताया था और कहा था कि विदेशी कोच भारतीय फेडरेशन और खेल प्राधिकरण के अधिकारियों से मिली भगत कर फुटबाल को लूट रहे हैं। उनके अनुसार भारत में पिछले तीन चार दशकों से कुछ भी नहीं बदला है। कोच बदले जा रहे हैं पर फुटबाल जहां की तहां खड़ी है।

उल्लेखनीय है कि हकीम के पिता स्वर्गीय रहीम ने भारत के चीफ कोच का दायित्व निभाते हुए एशियाई खेलों 1951 और1962 में भारत को विजयी बनाया था। चार ओलंम्पिक खेलों में उनके कुशल प्रशिक्षण से ही भारत को भागीदारी का सौभाग्य मिला था।

हकीम की तरह बीसवीं सदी के अधिकांश ओलंपियन और अन्तरराष्ट्रीय खिलाड़ी गुमनामी का जीवन जीते हुए दुनिया से जा चुके हैं। जो थोड़े बहुत ओलंपियन जीवित हैं, उनका मानना है कि जब तक हमारे पास अपने कोच नहीं होंगे फुटबाल की तरक्की मुश्किल है।

पूर्व चैंपियन यह जानना चाहते हैं कि विदेशी कोच रिजल्ट क्यों नहीं दे पा रहे। राष्ट्रीय टीम की बागडोर संभालते ही हर विदेशी कहता है कि भारत फुटबाल का सोया शेर है लेकिन अपने कार्यकाल की समाप्ति पर यह तोहमत लगते हुए जाता है कि भारतीय फुटबाल कभी नहीं सुधर सकती।

बंगाल के एक पूर्व अन्तरराष्ट्रीय खिलाड़ी ने विदेशी कोचों फुटबाल फेडरेशन और भारतीय खेल प्राधिकरण के बीच की सांठ गाँठ पर सवाल खड़ा किया है। उनके अनुसार यह तिकड़ी भारतीय फुटबाल को बहुत नुकसान पहुंचा रही है। वरना क्या कारण है कि लगातार विफलता के बाद भी गोरी चमड़ी वाले कोच पद पर बने रहते हैं।

पंजाब के एक नामी वेटरन ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर है फेडरेशन और सरकार से यह जानने का प्रयास किया है कि आखिर राष्ट्रीय टीम को प्रशिक्षित करने के लिए ही विदेशी कोच क्यों नियुक्त किए जाते हैं। बेहतर यह होगा कि शुरुआती स्तर से ही उभरते खिलाड़ियों को विदेशियों के हवाले कर दिया जाए ताकि उनकी बुनियाद मजबूत हो सके। इस ओर शायद ही किसी ने कभी ध्यान दिया हो।

एक सर्वे से पता चला है कि भारतीय फुटबाल अपने कोचों और ट्रेनरों के हाथों ज्यादा सुरक्षित है। बिरुमल कहते हैं कि उनके सिखाए कई खिलाड़ी आज बांग्लादेश की राष्ट्रीय टीम में खेल रहे है क्योकि उनकी बुनियाद खासी मजबूत है। इसी प्रकार अन्य भारतीय कोच भी बेहतर रिजल्ट दे सकते हैं।

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